कोलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत 🌟
नैतिक विकास क्या है? 🤔
नैतिक विकास का अर्थ है कि बच्चे अपने समाज में अच्छे और बुरे के बीच भेद करना सीखते हैं। यह उनके सामाजिक, सांस्कृतिक नियमों और कानूनों पर आधारित होता है। उदाहरण के लिए, अगर एक बच्चा किसी का पेंसिल चुराता है और दूसरा बच्चा इसे देखता है, तो यह दोनों के लिए एक नैतिक दुविधा की स्थिति बनती है।
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कोलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत 📚
लॉरेंस कोलबर्ग ने अपने सिद्धांत को पियाजे के नैतिक विकास के सिद्धांत पर आधारित किया। उन्होंने बच्चों और वयस्कों की नैतिक सोच को परखने के लिए नैतिक दुविधाओं का प्रयोग किया।
मुख्य विशेषताएं:
नैतिक निर्णय तर्क पर आधारित होते हैं।
बच्चों से लेकर वयस्कों तक नैतिक विकास का अध्ययन किया गया।
उन्होंने एक दीर्घकालिक अध्ययन (longitudinal study) किया, जिसमें हर 3-4 वर्षों में पुनःसाक्षात्कार किया गया।
उन्होंने नैतिक विकास के 6 चरण निर्धारित किए।
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कोलबर्ग के सिद्धांत के तीन स्तर और छह चरण 🛤️
1. प्राक-सामाजिक स्तर (Pre-conventional Level)
यह स्तर मुख्यतः 9 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर लागू होता है।
चरण 1: दंड और आज्ञाकारिता (Punishment & Obedience)
नियमों का पालन सिर्फ दंड से बचने के लिए किया जाता है।
चरण 2: स्वार्थपूर्ण उद्देश्य (Instrumental Purpose)
निर्णय स्वयं के फायदे पर आधारित होते हैं। जैसे, "तुम मेरा काम करो, मैं तुम्हारा करूंगा।"
2. पारंपरिक स्तर (Conventional Level)
यह स्तर किशोरावस्था और अधिकतर वयस्कों पर लागू होता है।
चरण 3: अच्छा लड़का/लड़की (Good Boy/Good Girl)
नैतिकता सामाजिक स्वीकृति और दूसरों को खुश करने पर आधारित होती है।
चरण 4: कानून और व्यवस्था (Law & Order)
समाज की व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियमों का पालन किया जाता है।
3. उत्तर-सामाजिक स्तर (Post-conventional Level)
यह स्तर दुर्लभ होता है और केवल कुछ वयस्कों पर लागू होता है।
चरण 5: सामाजिक अनुबंध (Social Contract)
नियम लचीले माने जाते हैं और सामाजिक भलाई को प्राथमिकता दी जाती है।
चरण 6: सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत (Universal Ethical Principles)
निर्णय सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों और व्यक्तिगत विवेक पर आधारित होते हैं।
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नैतिक दुविधा का उदाहरण 🧩
कोलबर्ग ने एक प्रसिद्ध दुविधा प्रस्तुत की जिसे "हाइन्ज दुविधा" कहा जाता है:
कहानी:
एक महिला कैंसर से पीड़ित थी। एक दवा उसके जीवन को बचा सकती थी, लेकिन दवा बहुत महंगी थी। महिला के पति ने दवा बनाने वाले से छूट की मांग की, लेकिन उसने मना कर दिया। हाइन्ज ने मजबूरी में दवा चुराई।
प्रश्न: क्या हाइन्ज ने सही किया? क्यों?
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कोलबर्ग के सिद्धांत की आलोचनाएँ 🚩
1. नैतिक तर्क ≠ नैतिक व्यवहार
केवल नैतिक सोच का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति वैसा व्यवहार करेगा।
2. न्याय पर अधिक जोर
यह सिद्धांत करुणा और सहानुभूति जैसे कारकों को नजरअंदाज करता है।
3. संस्कृति पक्षपात
यह सिद्धांत व्यक्तिगत अधिकारों पर केंद्रित है और सामूहिक संस्कृति को नजरअंदाज करता है।
4. आयु पक्षपात
अधिकतर अध्ययन 16 वर्ष से कम उम्र के लड़कों पर आधारित था।
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निष्कर्ष 🏁
कोलबर्ग का सिद्धांत नैतिक विकास को समझने का एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है। हालांकि, इसमें कुछ सीमाएँ हैं, लेकिन यह आज भी शिक्षकों, मनोवैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है।
क्या आपने कभी नैतिक दुविधा का सामना किया है? हमें अपने विचार नीचे कमेंट में बताएं! 🖋️
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